अटल बिहारी वाजपेयीः तस्वीरों में सफ़र

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हो गया है. लंबे समय से बीमार चल रहे 93 वर्षीय वाजपेयी जून महीने से ही नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे.
एम्स ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने गुरुवार की शाम पाँच बजकर पाँच मिनट पर अंतिम सांस ली.
उन्हें इसी वर्ष जून में किडनी में संक्रमण और कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से एम्स में भर्ती कराया गया था.
उनका शव शुक्रवार को नई दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के हेडक्वार्टर में श्रद्धांजलि के लिए रखा जाएगा. उनकी अंतिम क्रिया विजयघाट पर शुक्रवार को शाम 5 बजे की जाएगी.
भारत रत्न से सम्मानित वाजपेयी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे, पहली बार 1996 में 13 दिनों के लिए फिर 1998 से 1999 और आखिरी बार 1999 से 2004 तक.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वाजपेयी के निधन से एक युग का अंत हो गया है.
देश के प्रधानमंत्री के साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी एक सर्वप्रिय कवि, वक्ता और समावेशी राजनीति के पर्याय थे.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया, "भारत ने आज एक महान सपूत खो दिया. पूर्व प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी जी लाखों के चहेते थे. मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं. हमें हमेशा उनकी कमी अखरेगी."
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने राजमाता और वाजपेयी की तस्वीर ट्वीट कर बता रही हैं कि उन्हीं दोनों की छाया में उन्होंने राजनीति में अपना पहला कदम रखा था.
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने राजमाता और वाजपेयी की तस्वीर ट्वीट कर बता रही हैं कि उन्हीं दोनों की छाया में उन्होंने राजनीति में अपना पहला कदम रखा था.
राजनीतिज्ञों के अलावा हिंदी सिनेमा के लोग भी वाजपेयी को विनम्र श्रद्धांजलि दे रहे हैं. अभिनेता फ़रहान अख़्तर ने लिखा है कि शांति और एकता के साधने वाले व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा.
अभिनेता बमन ईरानी ने लिखा है कि ऐसा बहुत कम होता है कि किसी व्यक्ति को राजनीति में सबसे इतना प्यार और सम्मान मिले.
एक स्कूल टीचर के घर में पैदा हुए वाजपेयी के लिए शुरुआती सफ़र आसान नहीं था. 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई थी.
उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के बाद पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया. उन्होंने राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का संपादन किया.में वो भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे. अपनी कुशल भाषण कला शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया. हालांकि लखनऊ में एक लोकसभा उप चुनाव में वो हार गए थे.
दरअसल 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया. लखनऊ में वो चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो दूसरी लोकसभा में पहुंचे.
इसके साथ ही उन्होंने संसद के गलियारे में अपनी पांच दशकीय संसदीय करियर की शुरुआत की थी. से 1973 तक वो भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे. विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया.
1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया. इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और वो इसे अपने जीवन का सबसे सुखद क्षण बताते थे.
1979 में जनता सरकार के गिरने के बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया गया. वाजपेयी इसके संस्थापक सदस्य थे और पहले अध्यक्ष भी.
1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे.
अटल बिहारी वाजपेयी 10 बार लोकसभा के लिए चुने गए. वो दूसरी लोकसभा से चौदहवीं लोकसभा तक संसद के सदस्य रहे. बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति भी रही. ख़ासतौर से 1984 में जब वो ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए थे.
1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे.
16 मई 1996 को वो पहली बार प्रधानमंत्री बने. लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा. इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे.आम चुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने.
लेकिन यह सरकार भी केवल 13 महीनों तक ही चल सकी. एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए.
1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया. गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली.

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