विक्रम को खोजने में नासा की मदद करने वाला भारतीय इंजीनियर

अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने चंद्रयान 2 के लैंडर विक्रम को खोजने का श्रेय चेन्नई स्थित इंजीनियर षणमुग सुब्रमण्यन को दिया है.
नासा ने विक्रम के पाए जाने की पुष्टि करते हुए एक बयान जारी कर बताया है कि षणमुग सुब्रमण्यन ने नासा के एलआरओ प्रोजेक्ट (लुनर रिकॉनाएसंस ऑरबिटर) को मलबे मिलने के बारे में संपर्क किया था और ये जानकारी मिलने के बाद एलआरओ टीम ने पहले और बाद की तस्वीरों की तुलना कर विक्रम के मलबे मिलने की पुष्टि की.
नासा ने अपने बयान में लिखा है, "इन मलबों को सबसे पहले षणमुग ने उस जगह से लगभग 750 मीटर दूर ढूँढ निकाला जहाँ वो गिरा था और ये उसकी एकमात्र स्पष्ट तस्वीर थी. "
नासा के एलान के बाद षणमुग ने भी ट्विटर पर लिखा, "नासा ने चंद्रमा की सतह पर विक्रम लैंडर को खोजने के लिए मुझे श्रेय दिया है."
बीबीसी संवाददाता प्रमिला कृष्णन ने नासा की पुष्टि के बाद षणमुग से बात की जिसमें उन्होंने कहा, "मैंने विक्रम के मलबे के एक छोटे से हिस्से को खोजा, नासा ने इसके बाद उस जगह के आस-पास और भी मलबे खोज निकाला और उस जगह का भी पता लगाया जहाँ वो गिरा था."
अपने फ़ेसबुक एकाउंट पर 33वर्षीय षणमुग ने ख़ुद का परिचय बड़ा दिलचस्प लिखा है - No one knows about me ;) मेरे बारे में कोई नहीं जानता.
फ़ेसबुक पर षणमुग के एकाउंट पर दी गई जानकारी के अनुसार वो मूलतः मदुरै शहर के रहने वाले हैं और अभी चेन्नई में रहते हैं.
यहीं लिखा है कि वो अभी लेनक्स इंडिया टेक्नोलॉजी सेंटर में टेक्निकल आर्किटेक्ट हैं और इससे पहले अमरीकी मल्टीनेशनल आईटी कंपनी कॉग्निज़ैंट में काम कर चुके हैं.
उन्होंने बीबीसी को बताया," मैंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की मगर मैं एक आईटी प्रोफ़ेशनल हैं और काम के अलावा वेबसाइट और ऐप डिज़ाइन करता हूँ जिसमें से कुछ को न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी रिव्यू किया है. इनमें एक टेक्स्ट ओनली रीडर ऐप भी है."
चंद्रयान-2 मिशन के तहत विक्रम लैंडर को सात सितंबर को चंद्रमा की सतह पर उतारा जाना था मगर 47 दिनों की यात्रा के बाद लैंडिंग के थोड़ी देर पहले 2.1 किलोमीटर दूर पहले इसरो से उसका संपर्क टूट गया.
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने अगले दिन कहा कि उसने लैंडर को खोज लिया है मगर उन्होंने इसकी कोई तस्वीर कभी भी जारी नहीं की.
नासा का एक यान - एलआरओ प्रोजेक्ट (लुनर रिकॉनाएसंस ऑरबिटर) सितंबर से ही कई बार उस जगह के ऊपर से गुज़र रहा था मगर उसे भी कोई साफ़ तस्वीर नहीं मिल पा रही थी.
इसी बीच कई और लोगों की ये पता लगाने में दिलचस्पी थी कि विक्रम कहाँ गया और इनमें भारतीय कंप्यूटर प्रोग्रामर और मेकैनिकल इंजीनियर षणमुग सुब्रमण्यन भी शामिल थे.
षणमुग ने अमरीकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया, "विक्रम के क्रैश करने से ना केवल मुझे बल्कि मेरे जैसे कई लोगों को चांद को लेकर दिलचस्पी हुई. मुझे लगता है विक्रम अगर सही तरीक़े से लैंड करता तो शायद इतनी दिलचस्पी ना होती. इसके बाद मैं तस्वीरों को स्कैन करने लगा."
षणमुग ने विक्रम की गति और स्थिति की अंतिम जानकारी के आधार पर एक जगह कुछ सफ़ेद धब्बों को देखा जो पहले की तस्वीरों में नहीं दिखती थी.
इसके बाद उन्होंने नासा से संपर्क किया और 27 सितंबर, 28 सितंबर, 3 अक्तूबर और 17 नवंबर को ट्वीट किए.
3 अक्तूबर को उन्होंने उस जगह की पहले और बाद की तस्वीरों के साथ ट्वीट किया, क्या ये विक्रम लैंडर है? (लैंडिंग की जगह से 1 किलोमीटर दूर) लैंडर शायद चंद्रमा पर रेत के नीचे दबा हो?

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