करोड़ का लंचबॉक्स और चाय का प्याला चोरी

हैदराबाद पुलिस के पास एक अनोखा केस आया है, जिसके लिए उसे इतिहास में झांकना पड़ेगा.
केस है सोने के लंच बॉक्स की चोरी का. ये डिब्बा सिर्फ़ सोना से ही नहीं बना है, बल्कि इसमें नायाब हीरे-मोती भी जड़े हुए हैं.
इस लंचबॉक्स के अलावा हैदराबाद के अंतिम निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ान का नीलम-जड़ा सोने का चाय का एक प्याला, तश्तरी और चम्मच भी चोरी हो गया है.
चोरी किए गए सामान का भार तीन किलोग्राम है और इसकी क़ीमत करीब 50 करोड़ रुपए बताई जा रही है.
पुलिस को चोरी का पता सोमवार सुबह लगा. शक है कि चोरी रविवार-सोमवार की दरम्यानी रात को हुई.
ये सारा सामान निज़ाम संग्रहालय से चोरी हुआ है. यही संग्रहालय पहले निज़ाम का महल हुआ करता था.
10 साल पहले शाही परिवार की एक तलवार भी शहर के एक अन्य संग्रहालय से चोरी हो गई थी.
ख़बरों के मुताबिक़ पुलिस ने स्थानीय पत्रकारों को बताया है कि चोरों ने म्यूज़ियम के सीसीटीवी कैमरों से छेड़छाड़ की थी ताकि उनकी चोरी की रिकॉर्डिंग न हो सके.
जिस कांच के दरवाज़े के उस पार ये सामान था, उस दीवार को तोड़ने के बजाय, बड़ी नफ़ासत के साथ खोला गया था ताकि कांच टूटने की आवाज़ न आए.
निज़ाम म्यूज़ियम को साल 2000 में जनता के लिए खोला गया था. इस म्यूज़ियम में मीर उस्मान अली ख़ान को साल 1967 में मिले कुछ बहुमूल्य उपहार भी रखे गए हैं.
साल 1967 में आख़िरी निज़ाम का निधन हो गया था.
निज़ाम के पास कई बेशकीमती हीरे-जवाहरात थे, जिनमें अंडे के साइज़ का जैकब्स डायमंड भी शामिल था.
भारत सरकार के सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने मीडिया संस्थानों से कहा है कि वो दलित शब्दावली का इस्तेमाल ना करें. मंत्रालय का कहना है कि अनुसूचित जाति एक संवैधानिक शब्दावली है और इसी का इस्तेमाल किया जाए.
मंत्रालय के इस फ़ैसले का देश भर के कई दलित संगठन और बुद्धिजीवी विरोध कर रहे हैं. इनका कहना है कि दलित शब्दावली का राजनीतिक महत्व है और यह पहचान का बोध कराता है.
इसी साल मार्च महीने में सामाजिक न्याय मंत्रालय ने भी ऐसा ही आदेश जारी किया था. मंत्रालय ने सभी राज्यों के सरकारों को निर्देश दिया था कि आधिकारिक संवाद या पत्राचार में दलित शब्दावली का इस्तेमाल नहीं किया जाए.
मंत्रालय का कहना है कि दलित शब्दावली का ज़िक्र संविधान में नहीं है.
सरकार के इस निर्देश पर केंद्र की एनडीए सरकार में ही मतभेद है. एनडीए की सहयोगी पार्टी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के नेता और मोदी कैबिनेट में सामाजिक न्याय राज्य मंत्री रामदास अठावले दलित के बदले अनुसूचित जाति शब्दावली के इस्तेमाल के निर्देश से ख़ुश नहीं हैं.
अठावले महाराष्ट्र में दलित पैंथर्स आंदोलन से जुड़े रहे हैं और कहा जाता है कि इसी आंदोलन के कारण दलित शब्दावली ज़्यादा लोकप्रिय हुई. अठावले का कहना है कि दलित शब्दावली गर्व से जुड़ी रही है. हीं सूचना प्रसारण मंत्रालय का कहना है कि यह आदेश बॉम्बे हाई कोर्ट के निर्देश पर दिया गया है. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में भी मोहनलाल मनोहर नाम के एक व्यक्ति ने दलित शब्दावली के इस्तेमाल को बंद करने के लिए याचिका दायर की थी.
याचिका में कहा गया था कि दलित शब्द अपमानजनक है और इसे अनुसूचित जातियों को अपमानित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
हालांकि इसे लेकर कोर्ट का कोई अंतिम फ़ैसला नहीं आया है. बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने सरकार को इस पर विचार करने के लिए कहा था.

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